
मणिपुर में राजनीतिक उथल पुथल के बीच कांग्रेस के पाँच विधायक जिन्होंने कुछ दिनों पहले पार्टी का साथ छोड़ा था आज भाजपा में प्रवेश कर लिया है। दलबदल की इस राजनीती ने मणिपुर में कांग्रेस को एक बड़ा झटका दिया, जो मणिपुर में सरकार बनाने के लिए तैयार थी।
कांग्रेस से भाजपा में आए इन पांच विधायकों में कांग्रेस विधायक दल के नेता और पूर्व सीएम ओकराम इबोबी सिंह के भतीजे ओकराम हेनरी सिंह शामिल हैं।ऐसा नहीं है कि मणिपुर में ये सब पलक झपकते हुआ हो पूर्वोत्तर राज्य में पिछले दो महीनों से राजनीतिक गतिविधियों की सुगबुगाहट जोरों से चल रही थी।
लेकिन केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की एक टेलीफोन कॉल ने सारी बाजी को पलट के रख दिया।
2017 में हुए 11वीं विधानसभा के चुनाव के बाद मणिपुर में भाजपा ने बढ़त बना ली। सीटों की कमी के बावजूद भाजपा अपने सहयोगियों को साधने में कामयाब रही और सरकार बनाने के लिए 60 सीटों वाली विधानसभा में 31 सीटें हासिल कीं। गठबंधन सरकार के तीन साल बाद बीजेपी और उसके गठजोड़ के बीच मतभेद खुलकर सामने आने के बाद हालात बदल गए।
भाजपा नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने नौ विधायकों के साथ छोड़ने के बाद बहुमत खो दिया, जिनमें तीन भाजपा विधायक, एनपीपी के चार विधायक, तृणमूल कांग्रेस के एक और एक निर्दलीय विधायक ने राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले 17 जून को पार्टी से इस्तीफा दे दिया। उच्च सदन का चुनाव 19 जून को होने वाला था, और सारे बागी विधायकों ने कांग्रेस को अपना समर्थन दिया।हालांकि भाजपा ने राज्यसभा सीट तो जीत ली, लेकिन दूसरी ओर, कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाने की कवायद भी शुरू की ।
लेकिन पूर्व सीएम इबोबी सिंह को सीबीआई ने राज्य सरकार के धन के कथित दुरुपयोग के लिए नवंबर 2019 में दर्ज एक एफआईआर के संबंध में बुलाया और इसी एक कॉल से बाजी को पलट के रख दिया ।सीबीआई का यह फोन ठीक उसी वक़्त आया जब कांग्रेस ने सरकार बनाने के लिए राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला के सामने दावा पेश किया था। सी बी आई के इस एक बुलावे ने न केवल कांग्रेस को सरकार बनाने से रोका बल्कि भाजपा सरकार के खिलाफ काम करने वालों को भी उनकी जगह दिखा दी।
राज्य के नेता अब फिर से भाजपा की ओर बढ़ रहे हैं, जिसने स्वदेशी दलों के समर्थन से राज्य में अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत किया था। और अब वह एक नए रूप मे राज्य की सबसे मजबूत पार्टी बनकर आई है।