
कोलकाता, अगस्त 19
कोलकाता में तृणमूल कांग्रेस के एक कार्यकर्ता ने जब आंकड़े अपने वरिष्ठा नेता के सामने रखे तो वे देखकर दंग रह गए। यह दीदीकेबोलो अभियान से संबंधित था, जो लोगों को उनकी शिकायतों दर्ज करने और सरकार से मदद लेने के लिए चालू किया गया था।
दीदीकेबोलो हेल्पलाइन में प्राप्त अधिकांश शिकायतें तृणमूल के अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार और दुर्भावना के बारे में थीं। नेता के पास उस आंकड़े को नज़रअंदाज़ करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था।
अभियान प्रशांत किशोर के दिमाग की उपज था, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 के लोकसभा और नीतीश के 2015 विधानसभा अभियानों का सफलतापूर्वक नेतृत्व करने के बाद भारत में चुनाव अभियान प्रबंधन में सबसे बड़ा नाम बन गया। राजनेता अपने अभियानों का प्रबंधन करने के लिए पागल बने हैं।
तृणमूल कांग्रेस कोई अपवाद नहीं था। लोकसभा चुनाव में झटका खाने के बाद, ममता बनर्जी के भतीजे और उत्तराधिकारी अभिषेक बनर्जी ने प्रशांत किशोर से संपर्क किया। दोनों ने पिछले साल जून की शुरुआत में दो घंटे से अधिक समय तक बंद दरवाजों के पीछे तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी से मुलाकात की।
प्रशांत और वह फर्म ने कॉर्पोरेट शैली में परियोजना पर काम करना शुरू किया। उद्देश्य था ममता बनर्जी को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा दी जा रही कड़ी चुनौती को दूर करने में मदद करने के लिए रणनीति तैयार करना।
दीदीकेबोलो ने शुरू में एक चर्चा पैदा की, यह जल्द ही बाहर हो गया। यह प्रशांत की सलाह थी की ममता अपने पदाधिकारियों से दुरी बना ले जिनपर भ्रस्टाचार के आरोप लग रहे थे। यहाँ तक की ममता ने अपने नेताओ को लिए गए “कमीशन” वापस करने को भी कह दिया। यह सब प्रशांत की सलाह पर चल रहा था।
पर दांव उल्टा पद गया। इसने संदेश यह गया कि तृणमूल नेता भ्रष्ट थे। तृणमूल के कई पदाधिकारी, जिनमें उनके विधायक और पंचायत सदस्य भी शामिल थे, जनता की नज़रो में गिर गए। जहा तक बहुत से लोग सार्वजनिक रुप से उनसे दिए गए कमीशन के रकम वापस मांगने लगे।
प्रशांत की रणनीति कथित रूप से तृणमूल को संकट में डाल दिया।
इन सब के बाद भी ममता ने प्रशांत किशोर का साथ नहीं छोड़ा। खाद्यान और महामारी का मुकाबला करने की उनकी रणनीति भी राज्य में अच्छी नहीं रहीतृणमूल को जो मिला वह था वरिष्ट नेताओ के बीच टकराव और असंतुस्ट। आम कार्यकर्ताओ को लगने लगा की पार्टी में बाहरी व्यक्ति ज्यादा प्रभावशाली हो रहा है। ममता का भरोसा प्रशांत और उनकी टीम के लिए अभी भी जारी है।
कई वरिष्ठ नेताओं को अब लगने लगा है की प्रशांत किशोर की रणनीति पर यदि ऐसे ही चलते रहे तो तृणमूल कांग्रेस को फायदा काम नुकसान ज्यादा होगा।