आर कृष्णा दास
केंद्र में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने जब नयी शिक्षा नीति लागु की तो विरोधियो के लिए निंदा करने के लिए कोई ठोस बिंदु सामने नहीं आ रहा था। आखिरकार आलोचकों ने एक बिंदु पकड़ लिया की मातृभाषा को प्रोत्शाहित करने से अंग्रेजी का महत्त्व समाप्त हो जायेगा जिससे बच्चे अंतराष्ट्रीय िस्ठर पर पिछड़ जायेंगे।
जब ये बिंदु प्रकाश में आया तो निश्चित था इस बात का आकलन करना की क्या अंग्रेजी ही बच्चे के तरक्की का कारन हो सकता है ? विदेशी भाषा के बिना क्या बच्चे का भविष्या अंधकार में है ?
1983 में विश्व कप जीतने वाली भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान थे कपिल देव। भारतीय क्रिकेट बोर्ड के अधिकारी ने एक बार मजाक में कहा “भारत के कप्तान और अंग्रेजी भी नहीं बोल सकते हैं”।
कपिल ने उनकी टिपण्णी को सकारात्मक रूप से लिया और अंग्रेजी सीखना चालू किया। बाद में वे “रैपिडेक्स इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स” के ब्रांड एंबेसडर बन गए। अंग्रेजी सीखने से पहले ही कपिल विश्व में अपना नाम इस्थापित कर चुके थे।
वे कहते थे जब उन्होंने भाषा सीखी, तब भी उन्हें पता था कि उनकी क्रिकेट की सफलता का अंग्रेज़ी बोलने से कोई लेना-देना नहीं है, “मुझे अपनी क्रिकेटिंग साख के कारण भारत के लिए खेलने के लिए चुना गया था, न कि मेरी भाषा जो मेरी मातृभाषा थी “।
नई शिक्षा नीति “अंग्रेजी” के मुद्दे को बहस का प्रमुख केंद्र बनाया गया है। कई लोगों ने जोर देकर कहा कि क्षेत्रीय और स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने से अंग्रेजी को पीछे हटने में मदद मिलेगी। तर्क था अंग्रेजी वह भाषा है जो सदियों से चली आ रही है और यह हमें एक महान तुलनात्मक वैश्विक लाभ देती है क्योंकि यह वह भाषा है जिसमें दुनिया बातचीत करती है।
नई शिक्षा नीति में खामियों को खोजने की कोशिश करने वालों के लिए यहां सबसे बड़ा विरोधाभास है। शायद उन्हें नहीं मालूम विश्व में सबसे मंदारिन चीनी भाषा बोली जाती है उसके बात स्पैनिश। दिलचस्प बात यह है कि अंग्रेजी और हिंदी बोलने वालो के बीच बहुत ज्यादा अंतर नहीं है।
बदलती जीवन शैली और मेट्रो संस्कृति के साथ जहां धन अधिक मायने रखता है, एक व्यक्ति यह मानता है कि दैनिक जीवन में कुछ प्रमुख आवश्यकताएं हैं। स्मार्ट फोन लेना, सोशल मीडिया पर सक्रिय रहना और अंग्रेजी में बात करना नई जीवनशैली का आदर्श बन गया है।
चार साल पहले, श्रीदेवी को इंग्लिश विन्ग्लिश सिनेमा में भाषा के साथ संघर्ष करते हुए देखा था। अंग्रेजी न जानने की वजह से उसकी बेटी और पति ने उनका मजाक उड़ाया। उसकी प्रतिभा खाना पकाने में निहित थी और वह एक स्वतंत्र उद्यमी थी। उसके कौशल का उस भाषा से कोई लेना-देना नहीं था जो उसने बोली थी, लेकिन उसने फिर भी अंग्रेजी सीखी ।
इसके अलावा, प्रतिभा में भाषा की सीमा नहीं होती है। गाँव के स्कूलों के असाधारण प्रतिभा वाले बच्चे मेरिट लिस्ट में जगह बना रहे हैं और महत्पूर्ण क्षेत्रों में अपने क्षेत्रो में अपने आप को इस्थापित कर रहे हैं।
वास्तव में अंग्रेजी को सफलता की प्रमुख आवश्यकता बना दी गई है जबकि सफलता के लिए मेहनत ज्यादा मायने रखती है।
और यदि अंग्रेजी वाकई में सफलता की भाषा है, तो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी प्रधानमंत्री शी जिनपिंग के पास चिंता करने के कारण हो सकते हैं। दुनिया के दोनों शक्तिशाली नेता कई अन्य प्रभाशाली लोगों में से हैं जो अंग्रेजी नहीं बोल सकता।